

मुंगेली – 27 अगस्त से नगर के पंडालो और घरो मे गजानन महराज विराजित हो गए ,, इसके साथ ही नगर सहित ग्रामीण अंचलो मे 11 दिनों तक भक्ति की बयार शरू हो गईं,, गणेश स्थापना को लेकर लोगो का उत्साह हफ्ते भर पहले से प्रारभ हो जाता है,, वही महीने भर पहले से मुर्तिया बनने वाले भी गणपति की मुर्तिया तैयार करने मे लग जाते है,, प्राचीन मान्यता के अनुसार घरो मे छोटी मूर्तियों की स्थापना की जाती है वही पंडालो मे बड़ी मुर्तिया बैठते है,, गणपति महराज को प्रथम पूज्य देवता कहा जाता है रिद्धि सिद्ध के देवता माने जाते है,,
नगर सहित ग्रामीण अंचलो मे गणेश उत्सव की धूम – नगर सहित ग्रामीण अंचलो मे गणेश उत्सव की धूम नजर आ रही है, हर वर्ग के लोग अपनी श्रद्धांनुसार गणपति की सेवा मे लगे है,, नगर सहित ग्रामीण अंचलो के पंडालो लगभग 20 से 30 छोटी बड़ी प्रतिमा है वही कई घरो मे भी लोगो ने उत्साह से मूर्ति स्थापना की है,,
गणपति स्थापना का इतिहास – महाराष्ट्र में सातवाहन, राष्ट्रकूट और चालुक्य राजवंशों के समय से ही गणेशोत्सव की परंपरा रही है, जिसके बाद पेशवाओं ने भी इसे बढ़ावा दिया.
शिवाजी महाराज का योगदान – छत्रपति शिवाजी महाराज ने मुगल शासन के दौरान अपनी संस्कृति और सनातन धर्म की रक्षा के लिए गणेशोत्सव की शुरुआत की, जिससे लोगों को एकता और राष्ट्रीय भावना से जुड़ने का अवसर मिला।
पहली सावर्जनिक मूर्ति स्थापना – पहली विशाल गणपति प्रतिमा की स्थापना और उत्सव का आयोजन भाऊसाहेब लक्ष्मण जावले द्वारा किया गया था, जिसे बाद में पूरे महाराष्ट्र में राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाने लगा.
आधुनिक समय में महत्व – आज भी यह त्योहार महाराष्ट्र, पुणे और मुंबई के साथ-साथ पूरे भारत और दुनिया भर
में धूमधाम से मनाया जाता है
क़्या प्रिय है गजानन महराज को – भगवान गणेश को दूर्वा, मोदक अति प्रिय माना जाता है,, लोग अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए इसे चढ़ा मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना करते है.